परिचय
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) और भारत सरकार के बीच कानूनी टकराव नया मोड़ ले चुका है। X कॉर्प ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार आईटी एक्ट की धारा 79(3)(बी) और ‘सहयोग पोर्टल’ के जरिए अवैध सेंसरशिप कर रही है, जो संवैधानिक सुरक्षा उपायों को खत्म कर देती है। यह मामला 27 मार्च को अगली सुनवाई के लिए तैयार है। आइए समझते हैं कि यह विवाद क्या है और इसके निहितार्थ क्या हो सकते हैं।
कानूनी ढांचे की बुनियाद
- धारा 69ए: यह आईटी एक्ट, 2000 का प्रावधान है जो सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अखंडता के हित में ऑनलाइन कंटेंट हटाने का अधिकार देता है। 2015 के श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध ठहराया था, क्योंकि इसमें कड़े प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय (लिखित आदेश, पूर्व सुनवाई, और न्यायिक चुनौती का अधिकार) शामिल हैं।
- धारा 79(3)(बी): यह प्रावधान मध्यस्थों (सोशल मीडिया कंपनियों) को उनकी कानूनी सुरक्षा तभी प्रदान करता है, जब वे सरकार के ‘अवैध कार्य’ रोकने के आदेशों का पालन करें। X का आरोप है कि सरकार इस धारा का दुरुपयोग करते हुए सहयोग पोर्टल के माध्यम से बिना प्रक्रिया का पालन किए सीधे कंटेंट हटाने का आदेश दे रही है।

सहयोग पोर्टल: समानांतर सेंसरशिप का औजार?
गृह मंत्रालय द्वारा संचालित यह पोर्टल राज्य पुलिस और विभिन्न सरकारी एजेंसियों को सीधे कंटेंट हटाने के आदेश जारी करने की अनुमति देता है। X का दावा है कि इससे एक छाया ढांचा बन गया है, जहां हजारों अधिकारी बिना पारदर्शिता या निगरानी के मनमाने आदेश दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में पुलिस ने 11 मुस्लिम युवाओं को आरोपी बनाया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। ऐसे मामलों में सहयोग पोर्टल के आदेशों की वैधता पर सवाल उठते हैं।
X कॉर्प के तर्कों का सार
- प्रक्रियात्मक अनियमितताएं: धारा 69ए के विपरीत, 79(3)(बी) में लिखित कारण, सुनवाई, या अपील का प्रावधान नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी: श्रेया सिंघल केस में कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि कंटेंट हटाने के लिए धारा 69ए ही एकमात्र वैध रास्ता है।
- मनमानी का खतरा: सहयोग पोर्टल से हज़ारों अधिकारियों को सीधी शक्ति मिलने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दब सकती है।

सरकार का पक्ष और ग्रॉक AI विवाद
सरकार ने अदालत में कहा है कि सहयोग पोर्टल में शामिल न होने के लिए X के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हालांकि, ताजा विवाद X के AI चैटबॉट ग्रॉक को लेकर है। सूत्रों के मुताबिक, ग्रॉक द्वारा पीएम मोदी के बारे में दी गई प्रतिक्रियाओं से सरकार नाराज है, और इस पर प्रतिबंध की संभावना जताई जा रही है। यह घटना X और सरकार के बीच टकराव का नया अध्याय जोड़ती है।
पिछली झड़पें और बड़े सवाल
यह X की सरकार के खिलाफ पहली कानूनी लड़ाई नहीं है। 2022 में, कंपनी ने धारा 69ए के तहत जारी गैर-पारदर्शी आदेशों को चुनौती दी थी। उस समय भी X ने कहा था कि सरकार अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने का प्रयास कर रही है।
विशेषज्ञों की नजर में
कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल केस में इंटरनेट की स्वतंत्रता को ‘मौलिक अधिकार’ माना था। ऐसे में, सरकार को किसी भी सेंसरशिप के लिए पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करना होगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनुराग भारद्वाज कहते हैं, “सहयोग पोर्टल जैसे तंत्र से नागरिकों के अधिकारों पर खतरा है, क्योंकि इसमें जवाबदेही का अभाव है।”
निष्कर्ष: लोकतंत्र बनाम नियंत्रण की लड़ाई
यह मामला सिर्फ X और सरकार के बीच नहीं, बल्कि डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राज्य की निगरानी के बीच संतुलन का प्रतीक है। अदालत का फैसला भारत के इंटरनेट नियमन के भविष्य को परिभाषित करेगा। यदि X की याचिका स्वीकार होती है, तो सरकार को धारा 69ए की प्रक्रिया का कड़ाई से पालन करना होगा। वहीं, सरकार के पक्ष में फैसला आने पर टेक कंपनियों के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं। 27 मार्च की सुनवाई इस जंग में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी।
संदर्भ: श्रेया सिंघल केस (2015), सहयोग पोर्टल का संचालन, ग्रॉक AI विवाद, और X कॉर्प का 2022 का केस।