भूमिका
राजनीति का रंग कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता। कुछ ऐसा ही हो रहा है चिराग पासवान के साथ। एक समय दलित राजनीति की उम्मीद कहे जाने वाले चिराग, आज हिंदुत्व की लहर पर सवार दिख रहे हैं। कभी बॉलीवुड में चमकने की ख्वाहिश रखने वाला यह युवा अब संसद और केंद्र सरकार दोनों में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा रहा है।
चिराग की प्रारंभिक राजनीतिक पहचान
रामविलास पासवान की विरासत
चिराग राजनीति में एक मशहूर नाम के बेटे के तौर पर आए थे—दिवंगत रामविलास पासवान। उनके पिता ने दशकों तक दलित और पिछड़े वर्ग की आवाज को ऊंचा किया।
दलित राजनीति का उत्तराधिकारी
एलजेपी की कमान संभालते हुए चिराग को शुरू में दलितों का प्रतिनिधि माना गया। लेकिन वक्त के साथ यह छवि बदलने लगी।
चिराग और ‘मोदी के हनुमान’ की छवि
नरेंद्र मोदी से नजदीकी
चिराग खुद को खुलकर नरेंद्र मोदी समर्थक बताते हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वह ‘मोदी के हनुमान’ हैं।
‘मोदी के हनुमान’ बनने का अर्थ
इस बयान का राजनीतिक संदेश साफ था—वे भाजपा की नीतियों के साथ हैं, खासकर हिंदुत्व के एजेंडे में।
इफ्तार पार्टी और नई बहस
मुस्लिम नेताओं की अनुपस्थिति
चिराग की इफ्तार पार्टी चर्चा में आ गई जब उसमें एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं दिखा। मुस्लिम संगठनों ने इसे बहिष्कृत भी किया।
तिलक बनाम टोपी की राजनीति
नीतीश कुमार ने टोपी पहनी, जबकि चिराग ने तिलक लगाया और टोपी पहनने से इनकार कर दिया। यह दृश्य काफी प्रतीकात्मक था।

प्रतीकों की राजनीति: चिराग बनाम नीतीश
चिराग का यह व्यवहार भाजपा नेताओं के रवैये से मिलता-जुलता था, जबकि उनके पिता टोपी पहनने में कभी नहीं हिचकते थे।
हिंदुत्व की ओर झुकाव
बागेश्वर धाम का समर्थन
जब बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने बिहार में हिंदू राष्ट्र की बात की, तो चिराग ने उनका समर्थन किया।
संविधान बनाम हिंदू राष्ट्र
जब सवाल उठा कि क्या देश संविधान से चलेगा या धर्म से, तो चिराग ने दोनों को मिलाकर जवाब दिया लेकिन शास्त्री का पक्ष लिया।
तुष्टिकरण की राजनीति पर हमला
विपक्ष पर सीधा वार
चिराग ने विपक्ष, खासकर राजद पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया।
धर्मशाला वाला बयान
उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर विपक्ष को एक धर्म का इतना ही ख्याल है, तो वह एक धर्मशाला खोल लें।
दोहरे मापदंड और चुप्पी
धार्मिक बयानबाज़ी पर चुप्पी
जब भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर ने होली और जुमे की नमाज़ को लेकर विवादित बयान दिया, तब चिराग ने उनका बचाव किया।
एलजेपी में मुस्लिमों की गैर-मौजूदगी
टिकट वितरण में एकतरफा रवैया
पांच सांसदों वाली पार्टी में एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं है। यह रामविलास पासवान के समय के विपरीत है।
महबूब अली कैसर बनाम शांभवी चौधरी
चिराग ने इस बार किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया, लेकिन हिंदुत्व झुकाव वाली शांभवी चौधरी को चुना गया।
दलित मुद्दों से दूरी
औरंगाबाद की दलित किशोरी की हत्या
इस मामले पर चिराग की चुप्पी ने आलोचकों को चिंतित किया।
अन्य दलित मामलों पर भी शांत
अन्य दलित हत्याओं पर भी उन्होंने कोई ठोस बयान नहीं दिया।
मुस्लिम समुदाय में नाराज़गी
वक्फ संशोधन बिल पर समर्थन
चिराग ने इस बिल का समर्थन किया, जो मुस्लिम समुदाय में असंतोष का कारण बना।
अल्पसंख्यक मुद्दों की अनदेखी
उन्होंने मुस्लिमों से जुड़ी किसी बड़ी मांग या मुद्दे पर गंभीरता नहीं दिखाई।
भाजपा की रणनीति के साथ सामंजस्य
हिंदुत्व एजेंडे का समर्थन
चिराग की राजनीति अब स्पष्ट रूप से भाजपा की लाइन पर चलती दिख रही है।
राजनीतिक लाभ का गणित
माना जा रहा है कि इससे उन्हें हिंदू वोटबैंक को साधने में मदद मिलेगी।
जनमानस और प्रतिक्रिया
जनता क्या सोचती है?
कुछ लोग चिराग की रणनीति को समझदारी भरा कदम मानते हैं, तो कुछ इसे अवसरवाद कह रहे हैं।
सोशल मीडिया पर चर्चा
सोशल मीडिया पर उनके तिलक-टोपी वाले फैसले से लेकर बयानबाज़ी तक, हर पहलू पर गर्मा-गर्म बहस चल रही है।
निष्कर्ष: नई दिशा या रणनीतिक बदलाव?
चिराग पासवान की राजनीति अब केवल ‘रामविलास के बेटे’ वाली पहचान तक सीमित नहीं रही। उन्होंने खुद को भाजपा के करीबी और हिंदुत्व समर्थक नेता के तौर पर पेश किया है। हालांकि दलित और मुस्लिम समुदाय में यह छवि कितनी स्वीकार्य होगी, यह आने वाले चुनाव तय करेंगे।
❓ FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
Q1. क्या चिराग पासवान अब पूरी तरह भाजपा की लाइन पर हैं?
हाँ, उनके हालिया बयान और निर्णय यही संकेत देते हैं कि वे भाजपा की नीतियों के काफी करीब हैं।
Q2. क्या एलजेपी में अब कोई मुस्लिम नेता नहीं है?
इस समय लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है।
Q3. चिराग पासवान ने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन क्यों किया?
उन्होंने भाजपा की तरह इस बिल का समर्थन करते हुए इसे पारदर्शिता की दिशा में कदम बताया।
Q4. दलित मामलों पर चिराग की चुप्पी का क्या कारण हो सकता है?
राजनीतिक समीकरण बदलने के कारण उन्होंने अब दलित मुद्दों पर खुलकर बात करना कम कर दिया है।
Q5. क्या चिराग पासवान की यह नई राजनीति उन्हें फायदा पहुंचाएगी?
यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी, लेकिन हिंदू वोटबैंक की तरफ उनका झुकाव उन्हें भाजपा के साथ मजबूती से खड़ा कर सकता है।
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