भूमिका
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के हालिया बयान ने भारत-नेपाल संबंधों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत नेपाल में राजशाही को फिर से बहाल करने की कोशिश कर रहा है। यह बयान न केवल नेपाल की आंतरिक राजनीति में हलचल मचाने वाला है, बल्कि दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है।
आखिर ओली के इस बयान के पीछे की असली सच्चाई क्या है? क्या सच में भारत नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है, या फिर यह केवल एक राजनीतिक बयानबाजी है? इस पूरे मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।

नेपाल में राजशाही का इतिहास
नेपाल में 2008 तक राजशाही व्यवस्था लागू थी। इससे पहले, नेपाल में राजशाही का शासन था, जिसमें राजा को देश का सर्वोच्च शासक माना जाता था। लेकिन 2006 में लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों के बाद राजशाही को खत्म कर गणतंत्र प्रणाली अपनाई गई।
- नेपाल के अंतिम राजा ज्ञानेंद्र शाह थे, जिन्होंने 2001-2008 तक शासन किया था।
- 2008 में नेपाल को आधिकारिक रूप से गणराज्य घोषित कर दिया गया और राजशाही समाप्त हो गई।
- वर्तमान में नेपाल एक लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत संचालित होता है, जिसमें संसद, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की भूमिका प्रमुख है।
हालांकि, हाल के वर्षों में नेपाल में राजशाही समर्थकों की सक्रियता बढ़ी है। कई लोग मानते हैं कि नेपाल में राजशाही को फिर से बहाल किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे राजनीतिक अस्थिरता समाप्त हो सकती है।
पीएम ओली का दावा: क्या भारत राजशाही की वापसी चाहता है?
के.पी. शर्मा ओली का आरोप है कि भारत कुछ तत्वों के जरिए नेपाल में राजशाही को फिर से बहाल करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ भारतीय ताकतें नेपाल में हो रहे राजशाही समर्थक आंदोलनों का समर्थन कर रही हैं।
लेकिन इस दावे के समर्थन में ओली ने कोई ठोस सबूत नहीं दिया है। इसलिए उनके बयान पर सवाल उठ रहे हैं।

ओली के आरोपों की प्रमुख बातें
- भारतीय ताकतों की साजिश?
- ओली का कहना है कि भारत नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है और नेपाल में राजशाही समर्थकों को प्रोत्साहित कर रहा है।
- गणतंत्र को खतरा?
- उनका दावा है कि यह साजिश नेपाल के लोकतंत्र और संविधान को कमजोर करने के लिए रची जा रही है।
- सीमा विवाद से जुड़े मुद्दे?
- पहले से ही भारत-नेपाल के संबंध सीमा विवाद और अन्य कूटनीतिक मुद्दों के कारण तनावपूर्ण हैं। ऐसे में ओली का बयान हालात को और खराब कर सकता है।
नेपाल में राजशाही समर्थकों की बढ़ती सक्रियता
हाल के दिनों में नेपाल में राजशाही समर्थकों द्वारा कई रैलियां और प्रदर्शन किए गए हैं। इन आंदोलनों में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में नारे लगाए जा रहे हैं।
राजशाही समर्थकों की मांगें
- नेपाल में फिर से संवैधानिक राजतंत्र लागू किया जाए।
- वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली को समाप्त कर, राजा को सत्ता सौंपी जाए।
- नेपाल की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को पुनर्स्थापित किया जाए।
हालांकि, नेपाल के अधिकांश राजनीतिक दल और आम जनता अब भी गणतंत्र का समर्थन करती है।
भारत-नेपाल संबंध: पहले से ही तनावपूर्ण माहौल
नेपाल और भारत के बीच संबंध हमेशा से करीबी और महत्वपूर्ण रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच कई मुद्दों को लेकर तनाव बढ़ा है।
भारत-नेपाल के बीच प्रमुख विवाद
- सीमा विवाद:
- कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्रों को लेकर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद चल रहा है।
- नेपाल ने नया नक्शा जारी कर इन क्षेत्रों को अपने भूभाग में दिखाया था, जिससे विवाद और गहरा गया।
- चीन के बढ़ते प्रभाव:
- नेपाल में चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, जिससे भारत चिंतित है।
- ओली की सरकार चीन समर्थक मानी जाती थी, इसलिए भी उनके बयानों को संदेह की नजर से देखा जा रहा है।
- राजनीतिक अस्थिरता:
- नेपाल की आंतरिक राजनीति में बार-बार सरकारों का बदलना भी भारत-नेपाल संबंधों को प्रभावित कर रहा है।
क्या ओली का बयान राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश है?
नेपाल की विपक्षी पार्टियों ने ओली के बयान पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह केवल एक राजनीतिक स्टंट है, जिससे ओली अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं।
ओली के बयान के पीछे संभावित कारण
- अपनी लोकप्रियता बढ़ाना:
- ओली पहले भी भारत विरोधी बयान देकर नेपाल में राष्ट्रीयता की भावना को उभारने की कोशिश कर चुके हैं।
- विपक्ष को कमजोर करना:
- नेपाल में विपक्षी दलों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं।
- चीन को खुश करना:
- चीन नेपाल में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है और भारत-नेपाल के बीच दरार डालना उसके लिए फायदेमंद हो सकता है। ओली के बयान को चीन समर्थक नीति के रूप में भी देखा जा सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया और आगे का रास्ता
भारत ने अभी तक ओली के आरोपों पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान दोनों देशों के संबंधों को और बिगाड़ सकता है।
आगे की संभावनाएं
- नेपाल में सरकार और विपक्ष इस मुद्दे पर अलग-अलग राय रखते हैं, जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है।
- भारत-नेपाल संबंधों में और तनाव आ सकता है, जिससे दोनों देशों के व्यापार और आपसी सहयोग पर असर पड़ सकता है।
- अगर नेपाल में राजशाही समर्थक आंदोलन तेज होता है, तो यह एक बड़ा राजनीतिक संकट पैदा कर सकता है।
निष्कर्ष
के.पी. शर्मा ओली का यह बयान नेपाल की आंतरिक राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। हालांकि, उनके आरोपों का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह बयान सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने के लिए दिया गया है?
भारत और नेपाल के संबंध पहले से ही संवेदनशील स्थिति में हैं, और इस तरह के बयान दोनों देशों के रिश्तों को और खराब कर सकते हैं। नेपाल को अपनी आंतरिक समस्याओं को खुद हल करना चाहिए और बाहरी ताकतों पर आरोप लगाने की बजाय अपने लोकतंत्र को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए।
FAQs
- क्या भारत सच में नेपाल में राजशाही लाने की कोशिश कर रहा है?
- ओली ने ऐसा दावा किया है, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया है।
- नेपाल में राजशाही को खत्म क्यों किया गया था?
- 2006 में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के कारण नेपाल में राजशाही खत्म कर गणतंत्र लागू किया गया था।
- क्या ओली पहले भी भारत के खिलाफ बयान दे चुके हैं?
- हां, ओली पहले भी भारत पर हस्तक्षेप के आरोप लगा चुके हैं, खासकर सीमा विवाद को लेकर।
- नेपाल में राजशाही समर्थक आंदोलन कितना मजबूत है?
- यह आंदोलन कुछ हिस्सों में जरूर सक्रिय है, लेकिन नेपाल की जनता का बड़ा वर्ग अब भी गणतंत्र का समर्थन करता है।
- क्या यह मामला भारत-नेपाल संबंधों को प्रभावित करेगा?
- हां, यह बयान दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना सकता है।